कल दिन भर एक कहानी में


कल रात लिख नहीं पाया. दर असल कल दिन भर एक कहानी में लगा रहा. कहानी तो एक घंटे में ही पूरी हो गयी थी पर दिन भर उसकी खुमारी में रहा. स्वयं क्या मूल्यांकन कर सकूंगा उस कहानी का पर फिर भी पहली बार मै कहानी पूरी कर पाया. कई बार मैंने कई कहानी शुरू किये लिखना, पर एक-दो पेज के बाद लगता, कि जिस टोपिक के  टारगेट को हिट करना चाह रहा हूँ, उसके लिए जरूरी अनुभव मिस कर रहा हूँ और कहानी अधूरी रह जाती. पहली बार बस बैठा, और एक रौ में लिख डाला.
जाने कैसा लिखा, पर मेरे लिए ये महत्वपूर्ण है कि मै कोई कहानी पूरी कर सका, पहली बार. क्योंकि कहानी लिखना मुझे बहुत टफ लगता है. कविता अपने शिल्प के दरम्यान आपको मौका देती है कि आप पाठक के लिए खुद ही वातावरण सृजित करने दे, किन्तु कहानी में माहौल आपको ही निर्मित करना होता है. यहाँ तक कि पात्रों के नामों का चयन भी महत्वपूर्ण हो जाता है. ऐसा नहीं एक जैसी-तैसी कहानी लिख लेने के बाद मै कहानी लिखने की सैद्धांतिक विधि व मर्यादाएं निर्धारित करना चाह रहा हूँ, दर असल ये चुनौतियाँ मुझे आती हैं, जब भी मै कहानी लिखना चाहता हूँ.
मैंने कल जो कहानी लिखी, उसका शीर्षक रखा 'उन्माद की उड़न तश्तरी'. इसके दो पात्र हैं एक स्वयं प्रेम दूसरे उन्माद . आधुनिक युग के सत्यों से अनगिन साक्षात्कारों के बाद प्रेम अपने अस्तित्व के लिए उन्माद से प्यार करना चाहता है, किन्तु उन्माद को   बहुत ही अगम व छोर का यायावर पाता है जो तनिक भी भावनाओं की गहराइयों से प्रेम नहीं करता.

सोचा था, कहानी ब्लॉग पर डाल दूंगा. पर मेरे अनन्य मित्र जिन्होंने इस कहानी की अविश्वसनीय प्रशंशा की उन्होंने कहा , ब्लॉग पर कुछ टिप्पणियां मिलेंगी महज, जिसमे से आधी कुशल-क्षेम, शुभकामनायें वाली होंगी, शायद ही कोई टिपण्णी , कहानी पर चर्चा करते हुए, आलोचना करते हुए अथवा सम्यक प्रशंशा करते हुए आये..यहाँ तक कि ब्लॉग-जगत के धुरंधर, वरिष्ठ जनों की भी टिप्पणियां करीब-करीब औपचारिक ही होती हैं. ऐसा मै अपने (http://shreeshuvach.blogspot.com/) के अनुभव से कह सकता हूँ. सो अब कहानी को अलमीरा में रख दिया है, जैसी इसकी किस्मत . किस्मत इसलिए कह रहा हूँ, क्योकि ब्लॉग-अनुभव से ही जानता हूँ कि आप हैरान हो जाते हैं टिप्पणियों की आवक देख कर ....जिस पोस्ट पर बड़ी उम्मीद , उस पर बड़ी कम टिप्पणियां, और जिस पर कम उम्मीद उस पर नज़ारे इनायत....ना जाने क्यों ऐसा होता है.......खैर फिर आऊंगा इस दैनन्दिनी पर .........आप सबको एक अछे दिन के लिए शुभ कामनाएं...... 

आधी रात हो चली है.

आधी रात हो चली है. दिल्ली में झमा-झम बारिश हो रही है. काश के ये बारीश जुलाई-अगस्त में हुई होती तो मेरे पापाजी को कड़ी धूप में खेतों में पानी ना चलवाना पड़ा होता.उनकी तबियत ख़राब हुई सो अलग.JNU के इस ब्रह्मपुत्र हॉस्टल में बैठा-बैठा मै कई बार ये सोच रहा था कि आज का अजीब दिन है.भगदड़ से ५ छोटी लड़कियां मर गयीं तो कैम्पस में भी एक स्टुडेंट ने उचित हैल्थ फसिलिटी के अभाव में दम तोड़ दिया. पूरे दिन कई बातें सोचता रहा. मसलन , अब कुछ नौकरी-वौकरी के बारे में सोचना पड़ेगा.आस-पड़ोस में लड़के सारे काबिल निकल रहे है एक मै हूँ कि पढ़ाई बढ़ती ही जा रही है. एम.फिल. करके JNU से सोचा था कि किसी ना किसी काम का तो होई जाऊंगा...पर एकदम से ऐसा कुछ नजर नहीं आ रहा. इस प्रसिद्द कैम्पस का भी एक मिथक जैसा कलेवर बन पड़ा था,,टूटा. वैसे ढेर सारी खास बातें है इस कैम्पस में पर धीरे - धीरे यहाँ भी अनचाही तब्दीलियाँ आती जा रही हैं, इसका सबसे प्रमुख कारण है नयी आने वाली फैकल्टी में आचार्यत्व का अभाव. वजह...बेहद फोर्मल के कलेवर में होने वाली अपारदर्शी चयन प्रक्रिया.अब यहाँ भी भाई-भतीजावाद दिख जायेगा और देश की कलुषित राजनीति का असर भी. खैर...फिर भी अपना JNU बहुत ही अच्छा है, जब मै बाकि परिसरों के बारे में सोचता हूँ. थोडी बहुत पढ़ाई की मैंने .पर जाने आज क्यों कुछ परेशां सा रहा...शायद इसलिए कि अपनी किसी भी योजना में आज मन नहीं लगा. आगे प्रयास समुचित प्रयास करूंगा कि समय का बेहतर प्रयोग कर सकूं.

Diary

The life of every man is a diary in which he means to write one story, and writes another; and his humblest hour is when he compares the volume as it is with what he vowed to make it



James Matthew Barrie

ये मेरी 'प्रखर दैनन्दिनी

जब पहली बार ब्लॉग का कांसेप्ट सुना था तो मन में बात यही बनी थी की यह एक ऑनलाइन डायरी है, पर ब्लॉग बनाया तो सारी लेखनी उड़ेलने का मन हुआ और लिखा हुआ सब कुछ ब्लॉग पर आ गया....आज मन में आया क्यों ना एक डायरी बना ही ली जाये .....रोज का रोज तो लिखना संभव नहीं है पर कोशिश करूँगा लिखने की....और रोजमर्रा का व्यौरा नहीं निमित्त है लिखना पर जो विचार अठखेलियाँ कर जाते हैं उनकी कुछ प्रतिध्वनियाँ अंकित करने की चाहत है ये मेरी 'प्रखर दैनन्दिनी'...