नयी पौध की नीम के पेड़ पर अर्द्धनारीश्वर चर्चा


अंतरतम से और सर्वत्र से संवाद अल्केमिस्ट में वृद्ध पाउलो कोएलो भी चाहते हैं और जवान चेतन भगत भी. one night @call centre में चेतन भगत inner call की बात करते हैं. सरल इंग्लिश में लिखी गयी किताब, प्रवाहमयी. पर ९०% किताब, व्यक्ति के भौतिक विलासों पर है तो अचानक अंतिम १०% भाग में लेखक को inner call की याद आ जाती है. शायद लेखक कहना चाहता है, कि इस inner call को ignore करके कुछ भी संभव नहीं है, कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता. पर ये इतना अचानक घटता है उपन्यास में कि नाटकीय लगने लगता है. वैसे विषयवस्तु की दृष्टि से पुरी किताब साधारण लग रही होती है कि वह नाटकीय मोड़ आता है और पढ़ना निष्फल नहीं जाता.  

राही मासूम रजा की 'नीम का पेड़' और नागार्जुन की 'नयी पौध' भी पढ़ी. 'नयी पौध' स्वतंत्रता पश्चात, स्वाभाविक परिवर्तनों का बिगुल बजाते युवाओं पर देसी ढंग से प्रकाश डालता है, नागार्जुन की अपनी खास शैली, जबरदस्त चमत्कृत करती है और खासा रोचक है. पर यही 'नयी पौध' रजा के 'नीम के पेड़' से उसकी छांह छीन लेती है, जबकि आजादी के कुछ दशक हो चुके हैं. रजा की प्रशंसा करूँगा कि महज कुछ पन्नों में उन्होंने बेहद कसी हुई कहानी कहते हुए नीम के पेड़ का दर्द बयां कर दिया है. मुझे मौका मिला 'विष्णु प्रभाकर' जी की रचना 'अर्द्धनारीश्वर' पढ़ने का. या तो मै अल्पवयस्क हूँ या निश्चित ही यथार्थ अनुभव नहीं है, इस उपन्यास के 'मूल प्रश्न ' का. अथवा इस पर मेरे विचार यों है--- स्त्री-पुरुष सम्बन्ध तर्क आधारित नहीं हो सकते, क्योंकि ये प्रतिक्षण शारीरिक व मानसिक दोनों स्तरों पर घटते-बढ़ते रहते हैं. मुझे नहीं लगता की इस सम्बन्ध को कोई निश्चित सिद्धांत दिया जा सकता है. इस आकर्षक खलील जिब्रान की टिप्पणी को भी नहीं कि --''स्त्री-पुरुष एक दुसरे का प्याला भर सकते हैं पर पीना अपने-अपने प्याले से ही चाहिए.''  

मुझे लगता है इस धरा का प्रत्येक मनुष्य, विभिन्न आयामों में अलग-अलग होता है, उसी तरह (स्वाभाविक ही है) प्रत्येक 'स्त्री-पुरुष सम्बन्ध' भी अपनी तरह का अकेला ही होता है. तर्क की गुंजायश व्यक्तिगत व उभयगत या पारस्परिक स्तर पर ही है, व्यापक स्तर पर नहीं. आदरणीय लेखक ने फ्रायड के मनोविज्ञान व भारत की प्राचीनतम विवाह-संस्था के आदर्शों में समन्वय, आज के जटिलतम समय में करने की कोशिश की है. वैसे यह उपन्यास बलात्कार के मनोविज्ञान से आधार पाता है, पर इस सन्दर्भ से बारंबार 'स्त्री-पुरुष संबंधों' पर ही टीका हुई है. अंत तक जाते-जाते, बल्कि माफ़ करिए मध्याह्न से ही उपन्यास के तर्क निरे काल्पनिक लगने लगते हैं.

11 comments:

Mishra Pankaj ने कहा…

inner call को ignore करके कुछ भी संभव नहीं है, कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता.
इस बात में मै भी सहमती रखता हु पाठक जी धन्यवाद आपका ऐसे बोधगम्य लेख लिखने के लिए

दर्पण साह ने कहा…

Jahan Alchemist meri Favourite hai wahi Once night... mujhe prabhavitr nahi kar saki !!
Hann beshak indian writers ka Sense of humour mujhe prabhavit karta hai jo One night main bhi tha...
Pauolo Cohelo ki 'The zaheer' aur 'Eleven minutes' bhi prabhavit karti hai...
Espically 'The zaheer' ka time proof love !!

शरद कोकास ने कहा…

पुस्तकों से परिचय करवाने का यह बहुत महत्वपूर्ण कार्य आप कर रहे है इसे मुझ जैसा कोई पुस्तक प्रेमी ही समझ सकता है

सुशील ने कहा…

पर यही 'नयी पौध' रजा के 'नीम के पेड़' से उसकी छांह छीन लेती है..................

स्त्री-पुरुष सम्बन्ध तर्क आधारित नहीं हो सकते, क्योंकि ये प्रतिक्षण शारीरिक व मानसिक दोनों स्तरों पर घटते-बढ़ते रहते हैं...............


यह सही ही है की साहित्य का (विशेष कर हिंदी साहित्य..) भला प्रायः गैर -हिंदी के विद्वानों ने ही किया है...आप भी अपवाद नहीं लगते ..बस यही निरंतरता बनाए रखिये....

सागर ने कहा…

दर्पण की बात सही लगी... चेतन भगत... ट्रिक आजमा कर लिखते हैं... यही हाल स्लाम्दोग वाले स्वरुप जी का भी है... चेतन जी तो कबुलते भी हैं... वो आज की रफ्तार के साथ भागने वाले लेखक हैं... मॉडर्न लिखावट... कुछ महीने पहले... हिंदुस्तान में उनकी एक लघु कथा आई थी... अच्छी थी इसमें दोय्राय नहीं...

वन नाईट तो बहुत पहले पढ़ी है...

अभिषेक आर्जव ने कहा…

ज्यादा किताबें पढ़ना स्वाथ्य के लिये हानिकारक हो सकता है श्रीश भईया ! वन नाइट एट काल सेन्टर तो बकवास है ।……. अर्द्धनारीश्वर पढूंगा । किताबों के दाम भी वही लिख दिया किजिये , अच्छा रहेगा !

निशांत मिश्र - Nishant Mishra ने कहा…

बहुत अच्छा लिखा है आपने.

''स्त्री-पुरुष एक दुसरे का प्याला भर सकते हैं पर पीना अपने-अपने प्याले से ही चाहिए.'' खलील जिब्रान की इस पंक्ति से परिचय कराने के लिए आभार.

Amrendra Nath Tripathi ने कहा…

स्त्री-पुरुष सम्बन्ध में आपके द्वारा लेखन-कर्म से वाबस्ता कराती हुई जानकारी दिलचस्प है | इस विषय पर मोहन राकेश और जैनेन्द्र के रचनात्मक-कर्म से परिचित कराएँ {यह निवेदन है} | धन्यवाद् ............

अभिषेक आर्जव ने कहा…

.........waiting for new post !!!!!

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

चर्चा अच्छी लगी.

बेनामी ने कहा…

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