ये ब्लोगिंग में लाठी-बल्लम...?


ये इतना घमासान क्यूँ....? किसको साबित करना चाहते हैं..? किसके  बरक्श....? ये कौनसी मिसाल आप सब बना रहे हैं..? सब, सब पर फिकरे कस रहे हैं. आये थे, कुछ बांटने, ब्लॉग लिखने, कुछ सीखने, कुछ बताने,...., ये क्या करने लगे...? ये बार-बार ब्लोगिंग को गोधरा बनाने पर क्यूँ आमादा हैं, कुछ लोग. कोई ऐसी तो नयी बात नहीं कह रहे...धर्मों से जुड़ी ऐसी घृणित बातें तो पहले भी विकृत मन वाले कह गए हैं, इसमे इतना श्रम क्यूँ लगा रहे हैं...शर्म नहीं आती जब एक ब्लॉगर अपनी प्रोफाइल ही डीलीट कर लेता है. सबसे आधुनिक माने जाने वाले माध्यम पर भी आखिरकार हम एक डेमोक्रेटिक स्पेस नहीं ही रच पाए. क्या कहेगा कोई, "ये हिन्दी वाले....".  मैंने देखा है, ज्यादातर ब्लॉगर खासा अनुभवी हैं, जीवन-व्यापार का उन्हें खासा अनुभव है, उम्रदराज भी हैं, पर टिप्पणी पर टिप्पणी बस दिए जा रहे हैं. आप युद्ध नहीं कर सकते यहाँ, उसके लिए, शायद हमने गली,कूंचे,मोहल्ले, सड़क और सीमायें बनायीं है..मन नहीं भरा..यार ब्लोगिंग वाला स्पेस तो बस बहस के लिए रहने दो. गाली-गलौज के लिए जगहों की कमी है क्या..?

आस्था को दिल की प्यारी सी कोठरी में संजों कर रखिये, इसे बाजार में लांच करने की कोशिश इसे शर्मसार करेगी और कर रही है. आप किसी का भला नहीं कर रहे हैं. एक लेख लिखने में खासा थक जाता हूँ मै, टाइपिंग की ऐसी कोई स्पीड नहीं, पर कुछ लोग इतना श्रम महज किसी 'उन्माद' के लिए कर जाते हैं..हिन्दी ब्लोगिंग कमोबेश एक परिवार की तरह है, हम लोगों के सुख-दुःख में भी शामिल होते हैं, मौज में भी और थोड़ी मीठी-मीठी खिचाईं भी कर लेते हैं. पर यहाँ तो लाठी बल्लम चल रहे हैं. और हाँ इस लाठी की चोट ठीक नहीं होती, विष बन जाती है. एक सामान्य ब्लॉगर भी थोड़े ही दिनों में विषवमन करने लग जाते हैं. कुछ ब्लागरों की भाषा पढ़कर तो शर्म आती है. धर्म के नाम पर ऐसे लोग जिस बेहया भाषा का प्रयोग कर रहे हैं उनसे कहना चाहूँगा कि यकीन मानिये कि उस 'लिखे' को आपका कोई भी टीचर जिसने आपको कभी भी एक हर्फ़ भी सीखाया होगा; पढ़ेगा तो आपको उम्दा झापड़ रसीद करेगा. वो शर्मिंदा होगा अपनी इस फसल पर जो बस खर-पतवार बन कर रह गयी है.


इस हिन्दी ब्लॉग जगत की कुछ खास बातें है. इसमें हर उम्र, हर धर्म, हर भाषा भी, और हर पेशे के लोग हैं. सीखना हो तो सीखने के लिए मुक्त होकर इससे अच्छी जगह नहीं मिलेगी. कहते हैं कि लाख रुपये देकर भी एक अनुभव सीख लो. यहाँ वैसे ही यह गंगा निर्झर बह रही है. एक प्यारा सा परिवार बन पड़ा है इस अंतर्जालिक फैब्रिक को सम्हाल लो, एक नया ब्लॉगर आयेगा तो उसे हम क्या मिसाल देने जा रहे है, उसे ये जगह एक भावनाओं का मंदिर लगे, आत्मविश्वास का गुरुद्वारा, वाद-विमर्श की मस्जिद और संबल और स्नेह का चर्च लगे, इसे पीकदान ना बनने दीजिये. मेरी वरिष्ठ और चर्चित ब्लागरों से सदाग्रह है कि मौन ना रहे, पहल करें, इसकी भर्त्सना करें, वरना ब्लॉग्गिंग किसी और कुत्सित शब्द का समानार्थी हो जायेगा, यकीन मानिए..

चित्र साभार: गूगल .