यूँ ही बस इधर-उधर विचरना मन का
Posted by
Dr. Shreesh K. Pathak
on गुरुवार, 26 नवंबर 2009
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डायरी के पन्नों में क्या कुछ आ जाता है..कई बार उसकी कोई खास वज़ह नहीं होती, यूँ ही बस इधर-उधर विचरना मन का...कोई सन्दर्भ- प्रसंग नहीं..बिलकुल ही उन्मुक्त....उनमे से कुछ आपके समक्ष...
किस्मत से मै भिखारी हूँ
और किस्मत से ही मुझे
भीख मिलती है. वरना
'आगे बढ़ो' की सीख मिलती है..!!!
सिद्धांत एक ऐसा पुरुष है, जिसे कभी भी एक पतिव्रता नहीं मिलती..!!!
"जान लेकर करता है
खामोशी की शिकायत
दर्द की बात लिखता है
दर्द देने वाला.."
४. "ख़ता तब से शुरू हो गयी बेइंतिहा
आजमाना जबसे जनाब ने शुरू किया.."
देखें; 'श्रीश उवाच' पर- कि;
चित्र साभार:गूगल