08.03.2020
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Image Source: Monthly Review |
घटना 1. महिला सुपरवाइजर महिला छात्र से: शादी करने जा रही हो तो PhD नहीं करवा पाऊँगी मै, डेडलाइन पर राइट अप नहीं दोगी तो कौन तुम्हारे हसबैंड से एक्सक्यूज सुनेगा।
(छात्रा MPhil में सबसे ज्यादा मार्क्स लाने के बाद भी अखिरकार PhD छोड़ने का फैसला करती है।)
घटना 2. महिला HR नए महिला टीचर से इंटरव्यू के बाद: आप शादीशुदा हैं?
महिला टीचर: हाँ
महिला HR: बेबी कब तक प्लान करना है?
महिला टीचर: अभी तो नहीं
महिला HR: लिखकर दे दीजिए कि अगले दो साल आप बेबी प्लान नहीं करने वाली।
(महिला टीचर वह नौकरी छोड़ना मुफीद समझती है)
दोनों घटनाएँ सत्य हैं। महिला सुपरवाइजर और महिला HR को समाज में स्त्री सशक्तीकरण का प्रतीक मानते हुए कई सम्मान मिल चुके हैं।
महिला दिवस पर एक बात कहना चाहता हूँ जो मुझे बेहद अखरती है वह यह कि अधिकांश तथाकथित आधुनिक महिलाएँ बेहद गहरे में खतरनाक स्तर तक पितृसत्तात्मक मनोवृत्ति (Patriarchal mindset) की होती हैं और उन्हें भान भी नहीं होता, कुछ स्त्रीवाद (Feminism) का अर्थ स्त्रीसत्तात्मकता (Matriarchy) समझती हैं।
बेहद कम स्त्रियाँ समझती हैं कि स्त्रीवाद का अर्थ जेंडर की समानता (Equality of Gender) नहीं, बल्कि लिंग की समानता (Equality of Sexes) है। स्त्रीवाद, समानता का उन्वान है और यह स्त्री, पुरुष और ट्रांसजेंडर की बात समान शिद्दत से करता है। पुरुषों की तो बात ही छोड़िए पर अगर स्त्री होकर स्त्रीवाद की भोथरी समझ है तो इसका जिम्मेदार स्वयं स्त्री या पुरुष ही नहीं बल्कि बाजार और शिक्षा व्यवस्था भी है।
इस समझ के स्त्री-पुरुष दुर्भाग्य से शिक्षा, साहित्य और मीडिया में भी हैं।